MA Semester-1 Sociology paper-II - Perspectives on Indian Society - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र द्वितीय प्रश्नपत्र - भारतीय समाज के परिप्रेक्ष्य - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र द्वितीय प्रश्नपत्र - भारतीय समाज के परिप्रेक्ष्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2682
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र द्वितीय प्रश्नपत्र - भारतीय समाज के परिप्रेक्ष्य

अध्याय - 4

सभ्यतागत दृष्टिकोण :
एन. के. बोस एवं सुरजीत सिन्हा एन.के.

(Civilizational View :
N.K. Bose and Surjit Sinha )

प्रश्न- सभ्यता से आप क्या समझते हैं? एन.के. बोस तथा सुरजीत सिन्हा का भारतीय समाज परिप्रेक्ष्य में सभ्यता का वर्णन करें।

अथवा
सभ्यता का अर्थ समझाते हुए, एन. के. बोस तथा सुरजीत सिन्हा ने भारतीय सभ्यता में क्या कहा? विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।

उत्तर -

सभ्यता का अर्थ

सभ्यता के अन्तर्गत वे चीजें आती हैं, जिसका उपयोग करके व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। सभ्यता का सम्बन्ध उन भौतिक साधनों से है, जिनमें उपयोगिता का तत्व पाया जाता है जैसे कि उद्योग, आवागमन के साधन, मुद्रा आदि। मानव की विविध प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति के साधनों या माध्यमों को हम सभ्यता कह सकते हैं।

सभ्यता शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के 'Civitas' तथा 'Civis' शब्दों से हुई है, जिसका अर्थ क्रमशः 'नगर' तथा ' नगर निवासी' हैं। इस दृष्टि से सभ्यता का अर्थ उन नगरों या नगर निवासियों से है जो एक स्थान पर स्थायी रूप से निवास करते हैं, शिक्षित हैं तथा जिनका व्यवहार जटिल है।

प्रमुख विद्वानों की अग्रलिखित परिभाषाओं से इसका अर्थ स्पष्ट हो जाता है -

1. मैकाइवर एवं पेज के अनुसार "सभ्यता से हमारा अर्थ उस सम्पूर्ण प्रविधि तथा संगठन से है जिसे कि मनुष्य ने अपने जीवन की दशाओं को नियंत्रित करने के प्रयत्न से बनाया है।"
2. ग्रीन के अनुसार "एक संस्कृति तभी सभ्यता बनती है जब उसके पास एक लिखित भाषा, विज्ञान, दर्शन, अत्यधिक विशेषीकरण वाला श्रम विभाजन, एक जटिल तकनीकी तथा राजनीतिक पद्धति हो।" बोस ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति की संरचना पर कार्य कर इसकी परिवर्तनशील प्रकृति को उजागर किया है। भारत में कई स्तरों पर भिन्नता होते हुए भी इसमें एकता के मूलतत्व विद्यमान हैं।

एन. के. बोस का सभ्यता परिप्रेक्ष्य

बोस ने नगर और सम्भ्यता को विभिन्न आयामों की दृष्टि से देखने का प्रयास किया है। यदि सभ्यता के मानवशास्त्रीय अर्थ को स्वीकार किया जाता है तो उसका तात्पर्य एक समय विशेष के लोगों के खान-पान, रहन-सहन, भवन एवं सड़क निर्माण, सार्वजनिक स्थानों, कुओं, तालाबों, उद्योगों के संगठित रूप से है। उदाहरण जब हम कहते हैं कि हड़प्पा और मोहनजोदड़ों की सभ्यता, तो इसका तात्पर्य इन दोनों स्थलों पर एक समय विशेष में किए गए भौतिक निर्माण, कृषि, व्यापार, उद्योग, राजनीतिक व्यवस्था, अर्थव्यवस्था, धर्म, शिक्षा तथा सामाजिक व्यवस्था से है। बोस का विचार था कि संस्कृति के समक्ष मानव पूर्णतया निष्क्रिय नहीं होता, वह संस्कृति में बदलाव लाने में भी सक्षम है। इतिहास के पन्ने ऐसे उदाहरणों से भरे पड़े हैं जब किसी एक व्यक्ति या कुछ व्यक्तियों में संस्कृति के प्रवाह को बदल दिया है। यदि हम सम्भ्यता को समाजशास्त्रीय अर्थ के रूप . में विवेचित करते हैं तो पाँएगे कि समाजशास्त्रियों ने मानव के चारों ओर निर्मित वातावरण में दो बातें प्रमुखतः पाई हैं एक अभौतिक चीजें जैसे प्रथाएँ, परम्पराएँ, आर्थिक, राजनीतिक एवं सामाजिक व्यवस्थाएँ जिन्हें संस्कृति कहा गया है; तथा दूसरा पर्यावरण का भौतिक पक्ष; जैसे मकान, पेन घड़ी, मशीनें, पुस्तकें आदि जिसको सम्भ्यता कहा गया है। बोस ने सभ्यता का प्रयोग इसी अर्थ में किया है। उन्होंने संस्कृतियों के विश्लेषण और वर्गीकरण में हिन्दू ग्रन्थों की कसौटियों को प्रयोग करने का भी सुझाव दिया। उनके विचारानुसार केवल भौतिक वस्तुएँ ही किसी सभ्यता का एकमात्र आइना नहीं होतीं, अतः उस समय के तत्वज्ञान पर भी ध्यान दिया जाना आवश्यक है।

एन. के. बोस ने भारतीय नगरों के उद्गाम, उद्विकास तथा उद्विकास के कारकों का उल्लेख किया हैं। उन्होंने नगरों को सभ्यता का केन्द्र माना है। इस अर्थ में नगर आस-पास के गाँवों की आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक क्रियाओं के केन्द्र हैं। नगरों ने ही मानव की सभ्यता को जन्म दिया है। वे सभ्यताओं की जन्मस्थली हैं। नगरों में ही सभ्यता फलती-फूलती है। दूसरी सभ्यताएँ भी नगरों के विकास में अपनी भूमिका अदा करती हैं। इस प्रकार से सभ्यता और नगर परस्पर आश्रित हैं और एक-दूसरे के साथ अन्तर्क्रिया करते हैं जिससे पुराने समाज के स्थान पर नए समाज का निर्माण होता है। बोस ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति की संरचना पर कार्य कर इसकी परिवर्तनशील प्रकृति को उजागर किया है। भारतीय सभ्यता के लम्बे इतिहास की खोज-बीन करते हुये बोस ने यह निष्कर्ष निकाला कि भारत में कई स्तरों पर भिन्नता होते हुये भी इसमें एकता के मूलतत्व विद्यमान हैं। यद्यपि भारतवासियों में धर्म, भाषा, समुदाय, प्रजाति, क्षेत्र, व्यवसाय, भौतिक सम्पदा इत्यादि के आधार पर भिन्नता पाई जाती है, तथापि उनमें कई लक्षणों, प्रथाओं, परम्पराओं एवं विश्वासों में एकरूपता भी पाई जाती है। उनका विचार था कि भौतिक जीवन के स्तर पर जो अत्यधिक भिन्नताएँ देखने को मिलती हैं, वे भी तब धीरे-धीरे कम होती जाती हैं जब हम ऊपर की ओर जीवन के उच्च आदर्शों के लिए आगे बढ़ते जाते हैं उन्होंने जाति व्यवस्था का मार्क्सवादी विश्लेषण भी किया है। इस सन्दर्भ में उन्होंने जाति व्यवस्था के दैवीय उत्पत्ति के सिद्धान्त के साथ-साथ पुनर्जन्म की धारणा तथा पवित्रता अपवित्रता के विचारों को स्वीकार नहीं किया है।

उनका विचार था कि हिन्दू सभ्यता की विश्व दृष्टि पूरी तरह से समन्वयवादी है। इसमें किसी एक विश्व दृष्टि को दूसरी विश्व दृष्टि से श्रेष्ठ नहीं माना गया है।

सुरजीत सिन्हा का सभ्यता परिप्रेक्ष्य
(Civilization Perspective of Sinna)

सुरजीत सिन्हा ने भी सभ्यता परिप्रेक्ष्य को स्वीकार किया है और उन्होंने कहा है कि यदि हम भारतीय समाज को समझना चाहते हैं तो यहाँ की सभ्यता को जानना बहुत आवश्यक है। सभ्यता ही समाज का दर्पण है, जिसके आधार पर समाज की संरचना और विशेषताओं को समझा जा सकता है। सुरजीत सिन्हा भारत के प्रमुख समाजशास्त्री रहे हैं जिनके बारे में लोग अपेक्षाकृत कम परिचित हैं। उन्होंने मुख्य रूप से बराभूम की भूमिज जनजाति तथा बस्तर की जनजातियों के अतिरिक्त भारतीय जाति व्यवस्था पर भी कार्य किया है। उनका प्रमुख कार्य मध्य भारत में भूमिज - हिन्दू अन्तर्क्रिया पर रहा है जिसके आधार पर उन्होंने जनजाति-जाति सातव्य, जनजाति-राजपूत सातव्य, भूमिज क्षत्रिय सातव्य जैसी अवधारणाओं को विकसित किया है। इन अध्ययनों में सिन्हा ने जनजातियों तथा हिन्दू जातियों में अन्तर्क्रियाओं, सामाजिक गतिशीलता तथा अन्तर्क्रिया के परिणामस्वरूप होने वाले आन्दोलनों का अध्ययन किया है। उन्होंने जनजाति एकजुटता सम्बन्धी आन्दोलन, मसीही आन्दोलन इत्यादि अनेक विषयों पर कई लेख लिखे हैं जो मानवशास्त्र की सुप्रसिद्ध पत्रिकाओं जैसे -

• Man in india,
• Eastern Anthropologist
• Journal of Asiatic Society,
• Journal of American Folklore;

इत्यादि में प्रकाशित हुए हैं। सुरजीत सिन्हा ने अपने अध्ययनों में आदिवासी संस्कृति के भौतिक पक्ष अर्थात् सभ्यता के आधार पर भारत में सभ्यता के विकास की बात की है अर्थात् उनके अनुसार जनजातीय सभ्यता से ही भारतीय सभ्यता का विकास हुआ है। उन्होंने राबर्ट रैडफील्ड द्वारा प्रतिपादित "लोक कृषक- नगरीय सातव्य" की अवधारणा को अपनाते हुये भारतीय जनजातियों में हो रहे व्यावसायिक परिवर्तन का अध्ययन किया है। उनका विचार है कि जनजाती संस्कृति कृषक संस्कृति की ओर परिवर्तित हो रही है। उनका विचार था कि अनेक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक भौतिक तथ्यों का जातियों एवं जनजातियों में समान रूप से वितरण तथा उनकी जीवन-शैली में समानता, उनके बीच होने वाली अन्तर्क्रिया का परिणाम है। समानता के उदाहरण देते हुये उन्होंने भारत की अनेक निम्न जातियों में जनजातियों के समान सामाजिक व्यवहार में समानता, महिलाओं के लिए सांस्कृतिक सहभागिता, अपेक्षाकृत अधिक स्वतन्त्रता इत्यादि लक्षणों का उल्लेख किया है। अनेक जातियों एवं जनजातियों के देवालयों में स्थानीय देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ लगी हुई हैं। इन समानताओं के बावजूद सिन्हा उन विद्वानों से सहमत नहीं थे जिनका विचार था कि जनजातियाँ धीरे-धीरे जातीय संस्तरण में सम्मिलित होती जा रही हैं। उनका कहना था कि "जनजातियाँ पारिस्थितिकी, जनांकिकी, अर्थव्यवस्था, राजनीतिक और सामाजिक व्यवहार में नृजातीय समूहों से पृथक हैं। उनकी यह ऐतिहासिक छवि ही जनजातियों को हिन्दू जातियों से अलग करती है और उन्हें एक जनजातीय पहचान देती है। सुजीत सिन्हा ने बिहार की भूमिज जनजाति पर हिन्दूओं के बढ़ते हुये प्रभाव, जिसे उन्होंने हिन्दूकरण कहा, पर अनेक लेख लिखे हैं। इन लेखों में उन्होंने जनजातीय सभ्यता एवं स्थानीय हिन्दू सभ्यता में अनेक प्रकार से समन्वय की प्रक्रिया का उल्लेख किया है। जातियों की नवीन भूमिका का विवेचन करते हुये सिन्हा ने कहा है कि अब जातियों की परम्परागत भूमिका सीमित हो गई है तथा अब उन्होंने नवीन राजीनीतिक एवं आर्थिक भूमिकाएँ निभाना प्रारम्भ कर दिया है। इन सबके बावजूद अभी भी भारतीय समाज जिसे 'बन्द समाज' कहा जाता रहा है, में किसी 'मुक्त मॉडल' का विकास नहीं हो पाया है। :

इस प्रकार एन-के बोस और सुरजीत सिन्हा दोनों ही भारत में सभ्यता परिप्रेक्ष्य के अग्रणी विद्वान माने जाते हैं तथा उन्होंने न केवल सभ्यता का आधार बनाकर स्वयं अध्ययन किए, अपितु अन्य विद्वानों को भी सभ्यता मूलक अध्ययन करने की प्रेरणा दी।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- लूई ड्यूमाँ और जी. एस. घुरिये द्वारा प्रतिपादित भारत विद्या आधारित परिप्रेक्ष्य के बीच अन्तर कीजिये।
  2. प्रश्न- भारत में धार्मिक एकीकरण को समझाइये। भारत में संयुक्त सांस्कृतिक वैधता परिलक्षित करने वाले चार लक्षण बताइये?
  3. प्रश्न- भारत में संयुक्त सांस्कृतिक वैधता परिलक्षित करने वाले लक्षण बताइये।
  4. प्रश्न- भारतीय संस्कृति के उन पहलुओं की विवेचना कीजिये जो इसमें अभिसरण. एवं एकीकरण लाने में सहायक हैं? प्राचीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये? मध्यकालीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये? आधुनिक भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये? समकालीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये?
  5. प्रश्न- प्राचीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये।
  6. प्रश्न- मध्यकालीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये।
  7. प्रश्न- आधुनिक भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये।
  8. प्रश्न- समकालीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये।
  9. प्रश्न- भारतीय समाज के बाँधने वाले सम्पर्क सूत्र एवं तन्त्र की विवेचना कीजिए।
  10. प्रश्न- परम्परागत भारतीय समाज के विशिष्ट लक्षण एवं संरूपण क्या हैं?
  11. प्रश्न- विवाह के बारे में लुई ड्यूमा के विचारों की व्याख्या कीजिए।
  12. प्रश्न- पवित्रता और अपवित्रता के बारे में लुई ड्यूमा के विचारों की चर्चा कीजिये।
  13. प्रश्न- शास्त्रीय दृष्टिकोण का महत्व स्पष्ट कीजिये? क्षेत्राधारित दृष्टिकोण का क्या महत्व है? शास्त्रीय एवं क्षेत्राधारित दृष्टिकोणों में अन्तर्सम्बन्धों की विवेचना कीजिये?
  14. प्रश्न- शास्त्रीय एवं क्षेत्राधारित दृष्टिकोणों में अन्तर्सम्बन्धों की विवेचना कीजिये?
  15. प्रश्न- इण्डोलॉजी से आप क्या समझते हैं? विस्तार से वर्णन कीजिए।.
  16. प्रश्न- भारतीय विद्या अभिगम की सीमाएँ क्या हैं?
  17. प्रश्न- प्रतीकात्मक स्वरूपों के समाजशास्त्र की व्याख्या कीजिए।
  18. प्रश्न- ग्रामीण-नगरीय सातव्य की अवधारणा की संक्षेप में विवेचना कीजिये।
  19. प्रश्न- विद्या अभिगमन से क्या अभिप्राय है?
  20. प्रश्न- सामाजिक प्रकार्य से आप क्या समझते हैं? सामाजिक प्रकार्य की प्रमुख 'विशेषतायें बतलाइये? प्रकार्यवाद की उपयोगिता का वर्णन कीजिये?
  21. प्रश्न- सामाजिक प्रकार्य की प्रमुख विशेषतायें बताइये?
  22. प्रश्न- प्रकार्यवाद की उपयोगिता का वर्णन कीजिये।
  23. प्रश्न- प्रकार्यवाद से आप क्या समझते हैं? प्रकार्यवाद की प्रमुख सीमाओं का उल्लेख कीजिये?
  24. प्रश्न- प्रकार्यवाद की प्रमुख सीमाओं का उल्लेख कीजिये।
  25. प्रश्न- दुर्खीम की प्रकार्यवाद की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये? दुर्खीम के अनुसार, प्रकार्य की क्या विशेषतायें हैं, बताइये? मर्टन की प्रकार्यवाद की अवधारणा को समझाइये? प्रकार्य एवं अकार्य में भेदों की विवेचना कीजिये?
  26. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार, प्रकार्य की क्या विशेषतायें हैं, बताइये?
  27. प्रश्न- प्रकार्य एवं अकार्य में भेदों की विवेचना कीजिये?
  28. प्रश्न- "संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक परिप्रेक्ष्य" को एम. एन. श्रीनिवास के योगदान को स्पष्ट कीजिये।
  29. प्रश्न- डॉ. एस.सी. दुबे के अनुसार ग्रामीण अध्ययनों में महत्व को दर्शाइए?
  30. प्रश्न- आधुनिकीकरण के सम्बन्ध में एस सी दुबे के विचारों को व्यक्त कीजिए?
  31. प्रश्न- डॉ. एस. सी. दुबे के ग्रामीण अध्ययन की मुख्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  32. प्रश्न- एस.सी. दुबे का जीवन चित्रण प्रस्तुत कीजिये व उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  33. प्रश्न- डॉ. एस. सी. दुबे के अनुसार वृहत परम्पराओं का अर्थ स्पष्ट कीजिए?
  34. प्रश्न- डॉ. एस. सी. दुबे द्वारा रचित परम्पराओं की आलोचनात्मक दृष्टिकोण व्यक्त कीजिए?
  35. प्रश्न- एस. सी. दुबे के शामीर पेट गाँव का परिचय दीजिए?
  36. प्रश्न- संरचनात्मक प्रकार्यात्मक विश्लेषण का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  37. प्रश्न- बृजराज चौहान (बी. आर. चौहान) के विषय में आप क्या जानते हैं? संक्षेप में बताइए।
  38. प्रश्न- एम. एन श्रीनिवास के जीवन चित्रण को प्रस्तुत कीजिये।
  39. प्रश्न- बी.आर.चौहान की पुस्तक का उल्लेख कीजिए।
  40. प्रश्न- "राणावतों की सादणी" ग्राम का परिचय दीजिये।
  41. प्रश्न- बृज राज चौहान का जीवन परिचय, योगदान ओर कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  42. प्रश्न- मार्क्स के 'वर्ग संघर्ष' के सिद्धान्त की व्याख्या कीजिये? संघर्ष के समाजशास्त्र को मार्क्स ने क्या योगदान दिया?
  43. प्रश्न- संघर्ष के समाजशास्त्र को मार्क्स ने क्या योगदान दिया?
  44. प्रश्न- मार्क्स के 'द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद' से आप क्या समझते हैं? मार्क्स के 'द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिये?
  45. प्रश्न- मार्क्स के 'द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद' की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिये?
  46. प्रश्न- ए. आर. देसाई का मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य स्पष्ट कीजिए।
  47. प्रश्न- ए. आर. देसाई का मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य में क्या योगदान है?
  48. प्रश्न- ए. आर. देसाई द्वारा वर्णित राष्ट्रीय आन्दोलन का मार्क्सवादी स्वरूप स्पष्ट करें।
  49. प्रश्न- डी. पी. मुकर्जी का मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य क्या है?
  50. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक परिप्रेक्ष्य क्या है?
  51. प्रश्न- मुकर्जी ने परम्पराओं का विरोध क्यों किया?
  52. प्रश्न- परम्पराओं में कौन-कौन से निहित तत्त्व है?
  53. प्रश्न- परम्पराओं में परस्पर संघर्ष क्यों होता हैं?
  54. प्रश्न- भारतीय संस्कृति में ऐतिहासिक सांस्कृतिक समन्वय कैसे हुआ?
  55. प्रश्न- मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य की प्रमुख मान्यताएँ क्या है?
  56. प्रश्न- मार्क्स और हीगल के द्वन्द्ववाद की तुलना कीजिए।
  57. प्रश्न- राधाकमल मुकर्जी का मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य क्या है?
  58. प्रश्न- मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य की प्रमुख मान्यताएँ क्या हैं?
  59. प्रश्न- रामकृष्ण मुखर्जी के विषय में संक्षेप में बताइए।
  60. प्रश्न- सभ्यता से आप क्या समझते हैं? एन.के. बोस तथा सुरजीत सिन्हा का भारतीय समाज परिप्रेक्ष्य में सभ्यता का वर्णन करें।
  61. प्रश्न- सुरजीत सिन्हा का जीवन चित्रण एवं प्रमुख कृतियाँ बताइये।
  62. प्रश्न- एन. के. बोस का जीवन चित्रण एवं प्रमुख कृत्तियाँ बताइये।
  63. प्रश्न- सभ्यतावादी परिप्रेक्ष्य में एन०के० बोस के विचारों का विवेचन कीजिए।
  64. प्रश्न- सभ्यता की प्रमुख विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  65. प्रश्न- डेविड हार्डीमैन का आधीनस्थ या दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य स्पष्ट कीजिए।
  66. प्रश्न- भारतीय समाज को समझने में बी आर अम्बेडकर के "सबआल्टर्न" परिप्रेक्ष्य की विवेचना कीजिये।
  67. प्रश्न- दलितोत्थान हेतु डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा किये गये धार्मिक कार्यों का विवरण प्रस्तुत कीजिये।
  68. प्रश्न- दलितोत्थान हेतु डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा किए गए शैक्षिक कार्यों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिये।
  69. प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए : (1) दलितों की आर्थिक स्थिति (2) दलितों की राजनैतिक स्थिति (3) दलितों की संवैधानिक स्थिति।
  70. प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर का जीवन परिचय दीजिये।
  71. प्रश्न- डॉ. अम्बेडर की दलितोद्धार के प्रति यथार्थवाद दृष्टिकोण को स्पष्ट कीजिए।
  72. प्रश्न- डेविड हार्डीमैन का आधीनस्थ या दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य के वैचारिक स्वरूप एवं पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  73. प्रश्न- हार्डीमैन द्वारा दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य के माध्यम से अध्ययन किए गए देवी आन्दोलन का स्वरूप स्पष्ट करें।
  74. प्रश्न- हार्डीमैन द्वारा दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य से अपने अध्ययन का विषय बनाये गए देवी 'आन्दोलन के परिणामों पर प्रकाश डालें।
  75. प्रश्न- डेविड हार्डीमैन के दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य के योगदान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
  76. प्रश्न- अम्बेडकर के सामाजिक चिन्तन के मुख्य विषय को समझाइये।
  77. प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर के सामाजिक कार्यों पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर के विचारों एवं कार्यों का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।

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